साबुन का अधिक प्रयोग त्वचा के लिए हानिकारक
Use of excessive soap is harmful to the skin
यद्यपि रंग-रूप, नाक-नक्श की सुंदरता प्राकृतिक देन है, फिर भी त्वचा का सौंदर्य और उसकी सफाई करने में साबुन का प्रयोग महत्त्वपूर्ण होता है। यदि आपकी त्वचा पहले से ही मृदु, स्निग्ध और कांतिमय है, तो फिर आपका रूप बिना मेकअप किए भी आकर्षक लगेगा। फिर भी शरीर की बाहरी त्वचा की स्निग्धता बनाए रखने के लिए उसकी सफाई करना जरूरी होता है।
साबुन की उपयोगिता – Uses for Soap
देहातों में पहले लोगबाग काली चिकनी मिट्टी, राख, जैतून का तेल आदि लगाकर शरीर, बालों और कपड़ों की सफाई किया करते थे, लेकिन अब घर-घर साबुन का प्रयोग खूब होने लगा है। मैल शोधक होने के कारण हाथ-पैर, शरीर के अन्य हिस्सों पर जमी धूल, मैल व पसीने को धोने में साबुन का प्रयोग काफी बढ़ गया है।
साबुन के प्रकार – Types of soap
सर्वप्रथम कपड़े धोने के साबुन का आविष्कार हुआ था, फिर उसमें सुधार करके नहाने और हजामत बनाने का साबुन बनाया गया। अब तो बाजार में औषधि मिश्रित कीटाणुनाशक साबुन, ग्लिसरीन युक्त पारदर्शक साबुन, नीम के सत्व से बना साबुन, चंदन, गुलाब, मोगरा, चमेली आदि की खुशबू से युक्त साबुन, लिक्विड साबुन भी मिलने लगा है।
ध्यान देने योग्य बात यह है कि कपड़े धोने का साबुन शरीर की सफाई करने के लिए प्रयोग में नहीं लेना चाहिए, क्योंकि इसमें अधिक मात्रा में सोडा होने के कारण यह त्वचा पर जलन, खुजली, ददोरें पैदा कर सकता है । कपड़े धोने के साबुन में सोडा और चिकनाई का अनुपात एक और पांच का होता है। अच्छे साबुन में निम्न चार विशेषताएं होती हैं-
- उनमें स्वतंत्र क्षार नहीं होते,
- इस्तेमाल के समय चटकते नहीं,
- अल्कोहल में पूरी तरह घुलनशील होते हैं
- नमी की मात्रा 10 प्रतिशत से अधिक नहीं होती।
नुक़सान – Harm
जब हम शरीर पर साबुन को लगाते हैं, तो पानी से तैयार उसका घोल हमारे शरीर से धूल, मैल, अनेक प्रकार के जीवाणुओं को बहाकर नष्ट कर देता है। मगर बार- बार साबुन लगाते रहने से त्वचा की स्वाभाविक चिकनाई और अम्लता भी साबुन में मिले क्षार के कारण नष्ट होती रहती है, ध्यान रहे चिकनाई त्वचा को फटने से और अम्लता बहुत से रोगों के कीटाणुओं को शरीर में प्रवेश करने से रोकती है।
प्राकृतिक चीजों से सौंदर्य – Beauty from natural things
अब प्रश्न यह उठना स्वाभाविक है कि जब साबुन नहीं था, तो सुंदरियां अपने रूप- सौंदर्य को कैसे बनाए रखती थीं? निश्चय ही उस जमाने में आयुर्वेद की प्रकृति प्रदत्त चीजें, जैसे आंवला, रीठा, गुलाब, दूध, दही व बेसन आदि वस्तुओं से ही त्वचा की कोमलता और स्निग्धता को बनाए रखा जाता था। इन प्राकृतिक चीजों में त्वचा की पुष्टता के लिए विटामिन्स, कैल्शियम और चिकनाई विद्यमान रहते हैं। इन्हीं वस्तुओं को मिलाकर उबटन बनाया जाता था। इसके प्रयोग से चेहरे की सफाई भी हो जाती है और साथ-साथ मालिश भी।
साबुन कैसा हो? – What type of soap should be?
साबुन वही प्रयोग में लें, जो आपके लिए हितकारी हो, त्वचा पर कोई प्रतिक्रिया या दुष्प्रभाव उत्पन्न न करता हो। शरीर की त्वचा तैलीय, खुश्क और मध्यम प्रकार की होती है, जिनमें मध्यम त्वचा सबसे अच्छी मानी जाती है। जैसी त्वचा हो, उसी के अनुसार साबुन का प्रयोग उत्तम रहता है। तैलीय त्वचा पर नहाने का सामान्य साबुन लगाएं। खुश्क त्वचा पर साबुन का प्रयोग कम ही करें। पारदर्शक ग्लिसरीन युक्त साबुन लाभदायक है। तैलीय व खुश्क मिश्रित त्वचा और दाग-धब्बे वाली त्वचा बीमार त्वचा कहलाती है, अतः उसे डॉक्टर को दिखाकर उसका उचित इलाज कराना चाहिए। रूखी अथवा तैलीय त्वचा पर सौंदर्य निखार हेतु बेवजह और बार- बार साबुन का इस्तेमाल करना हानिकारक होता है। अतः जहां तक हो सके,, साबुन का कम से कम प्रयोग करें और उत्तम क्वालिटी का ही इस्तेमाल करें।